
पिछले २५-३० सालों ...खासकर १९९० के बाद से ...पत्रकारिता का चेहरा और चरित्र पूरी तरह से बदल चुका है !...यह मुद्दा राय व्यक्त करने का नहीं ...बल्कि यह जानने समझने का है कि...जब कोई नवजात पत्रकार लाखों की फीस अदा कर मीडिया संस्थान से पत्रकारिता की डिग्री लेकर आयेगा तो क्या ...वो सूखा , अकाल और पेयजल संकट की रिपोटिंग करने जाएगा !!...विषय... बहुत ठन्डे ... दिमाग से ...पत्रकारिता के बदलते चरित्र को समझने का है ...यह कह कर मैं कोई ताना नहीं मार रहा ...प्रबंधन और बाज़ार की चाल भी तो समझो ...बदलाव अपरिहार्य है ...मानक तै करो बदलना है ...